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कोई ला के दे दे मुझे लाल मेरा

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सुना था कि बेहद सुनहरी है दिल्ली, समंदर सी ख़ामोश गहरी है दिल्ली मगर एक मॉं की सदा सुन ना पाये, तो लगता है गूँगी है बहरी है दिल्ली वो ऑंखों में अश्कों का दरिया समेटे, वो उम्मीद का इक नज़रिया समेटे यहॉं कह रही है वहॉं कह रही है, तडप करके ये एक मॉं कह रही है   कोई पूँछता ही नहीं हाल मेरा…..! कोई ला के दे दे मुझे लाल मेरा उसे ले के वापस चली जाऊँगी मैं, पलट कर कभी फिर नहीं आऊँगी मैं बुढापे का मेरे सहारा वही है, वो बिछडा तो ज़िन्दा ही मर जाऊँगी मैं वो छ: दिन से है लापता ले के आये, कोई जा के उसका पता ले के आये वही है मेरी ज़िन्दगी का कमाई, वही तो है सदियों का आमाल मेरा कोई ला के दे दे मुझे लाल मेरा! ये चैनल के एंकर कहॉं मर गये हैं, ये गॉंधी के बंदर कहॉं मर गये हैं मेरी चीख़ और मेरी फ़रियाद कहना, ये मोदी से इक मॉं की रूदाद कहना कहीं झूठ की शख़्सियत बह ना जाये, ये नफ़रत की दीवार छत बह ना जाये है इक मॉं के अश्कों का सैलाब साहब, कहीं आपकी सल्तनत बह ना जाये उजड सा गया है गुलिस्तॉं वतन का नहीं तो था भारत से ख़ुशहाल मेरा कोई ला के दे दे मुझे लाल मेरा।
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ये ताजमहल ये लालकिला, ये जितनी भी तामीरें हैं, जिन पर इतराते फिरते हो, सब पुरखों की जागीरें हैं!! जब माँगा वतन ने खून, बदन का सारा लहू निचोड़ दिया, अफ़सोस मगर इतिहास ने ये, किस मोड़ पे लाके छोड़ दिया !!

इमरान प्रतापगढ़ी शायरी

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हमने उसके जिस्म को फूलों की वादी कह दिया। इस जरा सी बात पर हमको फंसादी कह दिया, हमने अकबर बनकर जोधा से मोहब्बत की। मगर सिरफिरे लोगों ने हमको लव जिहादी कह दिया |

इमरान प्रतापगढ़ी शायरी

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उनके हिस्से में किले मेरे, हिस्से में छप्पर में आते हैं….! अफ़सोस मगर आतंक के हर, इलज़ाम मेरे सर आते हैं….!!

इमरान प्रतापगढ़ी शायरी

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ज़माने पर भरोसा करने वालों, भरोसे का ज़माना जा रहा है ! तेरे चेहरे में एैसा क्या है आख़िर, जिसे बरसों से देखा जा रहा है !!!